मौत का वक़्त गुज़र जाएगा
ये भी सैलाब उतर जाएगा
आ गया है जो किसी सुख का ख़याल
मुझ को छुएगा तो मर जाएगा
क्या ख़बर थी मिरा ख़ामोश मकाँ
अपनी आवाज़ से डर जाएगा
आ गया है जो दुखों का मौसम
कुछ न कुछ तो कहीं धर जाएगा
झूट बोलेगा तो क्या है इस में
कोई वादा भी तो कर जाएगा
उस के बारे में बहुत सोचता हूँ
मुझ से बिछड़ा तो किधर जाएगा
चल निकलने से बहुत डरता हूँ
कौन फिर लौट के घर जाएगा
ग़ज़ल
मौत का वक़्त गुज़र जाएगा
फ़रहत अब्बास शाह