आबादियों में कैसे दरिंदे घुस आए हैं
मक़्तल गली गली है हर इक घर लहू लहू
अंजुम इरफ़ानी
आया था पिछली रात दबे पाँव मेरे घर
पाज़ेब की रगों में झनक छोड़ कर गया
अंजुम इरफ़ानी
अदा हुआ न कभी मुझ से एक सज्दा-ए-शुक्र
मैं किस ज़बाँ से करूँगा शिकायतें तेरी
अंजुम इरफ़ानी
बात कुछ होगी यक़ीनन जो ये होते हैं निसार
हम भी इक रोज़ किसी शम्अ पे जल कर देखें
अंजुम इरफ़ानी
चराग़ चाँद शफ़क़ शाम फूल झील सबा
चुराईं सब ने ही कुछ कुछ शबाहतें तेरी
अंजुम इरफ़ानी
दर्द-ए-दिल बाँटता आया है ज़माने को जो अब तक 'अंजुम'
कुछ हुआ यूँ कि वही दर्द से दो-चार हुआ चाहता है
अंजुम इरफ़ानी
हम फ़ना-नसीबों को और कुछ नहीं आता
ख़ूँ शराब कर लेना जिस्म जाम कर लेना
अंजुम इरफ़ानी
हर चेहरा हर रंग में आने लगता है
पेश-ए-नज़र यादों के अल्बम होते हैं
अंजुम इरफ़ानी
इस ने देखा है सर-ए-बज़्म सितमगर की तरह
फूल फेंका भी मिरी सम्त तो पत्थर की तरह
अंजुम इरफ़ानी