इतनी सारी शामों में एक शाम कर लेना
सोग चंद लम्हों का मेरे नाम कर लेना
लौट कर यक़ीनन मैं एक रोज़ आऊँगा
पलकों पे चराग़ों का एहतिमाम कर लेना
इक जन्म का मैं प्यासा रास्ता भी है लम्बा
एक क़ुलज़ुम-ए-मय का इंतिज़ाम कर लेना
हम फ़ना-नसीबों को और कुछ नहीं आता
ख़ूँ शराब कर लेना जिस्म जाम कर लेना
ये परिंद पर्वार्दा है खुली फ़ज़ाओं का
सब्ज़ बाग़ दिखला कर ज़ेर-ए-दाम कर लेना
ख़ाक से हमारी भी हो कभी गुज़र तेरा
बर-ज़बान-ए-शम-ओ-गुल कुछ कलाम कर लेना
बे-तकल्लुफ़ाना आ सादा-लौह लोगों में
रंग-आश्नाओं में जश्न-ए-बाम कर लेना
वक़्त-ए-शाम पलकों पर झिलमिला उठें तारे
शामिल-ए-दुआ 'अंजुम' का भी नाम कर लेना
ग़ज़ल
इतनी सारी शामों में एक शाम कर लेना
अंजुम इरफ़ानी