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अहमद कामरान शायरी | शाही शायरी

अहमद कामरान शेर

9 शेर

चाहिए है मुझे इंकार-ए-मोहब्बत मिरे दोस्त
लेकिन इस में तिरा इंकार नहीं चाहिए है

अहमद कामरान




चंद पेड़ों को ही मजनूँ की दुआ होती है
सब दरख़्तों पे तो पत्थर नहीं आया करता

अहमद कामरान




इक पल का तवक़्क़ुफ़ भी गिराँ-बार है तुझ पर
और हम कि थके-हारे मसाफ़त से गुरेज़ाँ

अहमद कामरान




कुर्रा-ए-हिज्र से होना है नुमूदार मुझे
मैं तिरे इश्क़ का इंकार उठाने लगा हूँ

अहमद कामरान




मिरी वफ़ा है मिरे मुँह पे हाथ रक्खे हुए
तू सोचता है कि कुछ भी नहीं समझता मैं

अहमद कामरान




मुझ पे तस्वीर लगा दी गई है
क्या मैं दीवार दिखाई दिया हूँ

अहमद कामरान




पाँव बाँधे हैं वफ़ा से जब ने
तेज़-रफ़्तार दिखाई दिया हूँ

अहमद कामरान




रास आएगी मोहब्बत उस को
जिस से होते नहीं वादे पूरे

अहमद कामरान




तू ने ऐ इश्क़ ये सोचा कि तिरा क्या होगा
तेरे सर से मैं अगर हाथ उठा लेता हूँ

अहमद कामरान