तेरे हिस्से के भी सदमात उठा लेता हूँ
आ तुझे आँखों पे ऐ रात उठा लेता हूँ
आम सा शख़्स बचेगा तू अगर मैं तेरे
ख़ाल-ओ-ख़द से ये तिलिस्मात उठा लेता हूँ
तू ने ऐ इश्क़ ये सोचा कि तिरा क्या होगा
तेरे सर से मैं अगर हाथ उठा लेता हूँ
ये अगर जंग-ए-मोहब्बत है मिरे यार तो फिर
ऐसा करता हूँ कि मैं मात उठा लेता हूँ
उस के लहजे में दराड़ आती है और मैं उसी वक़्त
ख़्वाब रख देता हूँ ख़दशात उठा लेता हूँ
ग़ज़ल
तेरे हिस्से के भी सदमात उठा लेता हूँ
अहमद कामरान