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अहमद जावेद शायरी | शाही शायरी

अहमद जावेद शेर

16 शेर

अजब सफ़र था अजब-तर मुसाफ़िरत मेरी
ज़मीं शुरू हुई और मैं तमाम हुआ

अहमद जावेद




दिल से बाहर आज तक हम ने क़दम रक्खा नहीं
देखने में ज़ाहिरा लगते हैं सैलानी से हम

अहमद जावेद




दिल-ए-बेताब के हमराह सफ़र में रहना
हम ने देखा ही नहीं चैन से घर में रहना

अहमद जावेद




दुनिया मिरे पड़ोस में आबाद है मगर
मेरी दुआ-सलाम नहीं उस ज़लील से

अहमद जावेद




एक आँसू से कमी आ जाएगी
ग़ालिबन दरियाओं के इक़बाल में

अहमद जावेद




घर और बयाबाँ में कोई फ़र्क़ नहीं है
लाज़िम है मगर इश्क़ के आदाब में रहना

अहमद जावेद




हमेशा दिल हवस-ए-इंतिक़ाम पर रक्खा
ख़ुद अपना नाम भी दुश्मन के नाम पर रक्खा

अहमद जावेद




ख़बर नहीं है मिरे बादशाह को शायद
हज़ार मर्तबा आज़ाद ये ग़ुलाम हुआ

अहमद जावेद




मशग़ूल हैं सफ़ाई-ओ-तौसी-ए-दिल में हम
तंगी न इस मकान में हो मेहमान को

अहमद जावेद