आँसू की तरह दीदा-ए-पुर-आब में रहना
हर गाम मुझे ख़ाना-ए-सैलाब में रहना
वो अबरू-ए-ख़मदार नज़र आए तो समझे
आँखों की तरह साया-ए-मेहराब में रहना
ग़फ़लत ही में कटते हैं शब-ओ-रोज़ हमारे
हर आन किसी ध्यान किसी ख़्वाब में रहना
दिन भर किसी दीवार के साए में तग-ओ-ताज़
शब जुस्तुजू-ए-चादर-ए-महताब में रहना
वीराना-ए-दुनिया में गुज़रते हैं मिरे दिन
रातों को रवाक़-ए-दिल-ए-बेताब में रहना
मिट्टी तो हर इक हाल में मिट्टी ही रहेगी
क्या टाट में क्या क़ाक़ुम ओ संजाब में रहना
घर और बयाबाँ में कोई फ़र्क़ नहीं है
लाज़िम है मगर इश्क़ के आदाब में रहना
इक पल को भी आँखें न लगीं ख़ाना-ए-दिल में
हर लम्हा निगहबानी-ए-असबाब में रहना
ग़ज़ल
आँसू की तरह दीदा-ए-पुर-आब में रहना
अहमद जावेद