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अहमद अशफ़ाक़ शायरी | शाही शायरी

अहमद अशफ़ाक़ शेर

11 शेर

अब किसी ख़्वाब की ताबीर नहीं चाहता मैं
कोई सूरत पस-ए-तस्वीर नहीं चाहता मैं

अहमद अशफ़ाक़




अजब ठहराव पैदा हो रहा है रोज़ ओ शब में
मिरी वहशत कोई ताज़ा अज़िय्यत चाहती है

अहमद अशफ़ाक़




बहुत बईद न था मसअलों का हल होना
अना के पाँव से ज़ंजीर हम हटा न सके

अहमद अशफ़ाक़




बिकता रहता सर-ए-बाज़ार कई क़िस्तों में
शुक्र है मेरे ख़ुदा ने मुझे शोहरत नहीं दी

अहमद अशफ़ाक़




चीख़ उठता है दफ़अतन किरदार
जब कोई शख़्स बद-गुमाँ हो जाए

अहमद अशफ़ाक़




फ़ासले ये सिमट नहीं सकते
अब परायों में कर शुमार मुझे

अहमद अशफ़ाक़




किसी की शख़्सियत मजरूह कर दी
ज़माने भर में शोहरत हो रही है

अहमद अशफ़ाक़




लगता है कि इस दिल में कोई क़ैद है 'अश्फ़ाक़'
रोने की सदा आती है यादों के खंडर से

अहमद अशफ़ाक़




मेरी कम-गोई पे जो तंज़ किया करते हैं
मेरी कम-गोई के अस्बाब से ना-वाक़िफ़ हैं

अहमद अशफ़ाक़