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कहने सुनने का अजब दोनों तरफ़ जोश रहा | शाही शायरी
kahne sunne ka ajab donon taraf josh raha

ग़ज़ल

कहने सुनने का अजब दोनों तरफ़ जोश रहा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

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कहने सुनने का अजब दोनों तरफ़ जोश रहा
शहर की बातों पे सहरा हमा-तन-गोश रहा

आँखों आँखों में वज़ाहत से हुआ कीं बातें
चुप न महफ़िल में वो बैठा न मैं ख़ामोश रहा

रख दिया वक़्त ने आईना बना कर मुझ को
रू-ब-रू होते हुए भी मैं फ़रामोश रहा

मुद्दतों ब'अद नक़ाब उस ने उठाई रुख़ से
सर-ब-सर शोला वो निकला जो सियह-पोश रहा

ठहरा इज़हार की हसरत को छुपाना मुश्किल
बन गया बोलती तस्वीर जो ख़ामोश रहा

धूप की थी जहाँ फ़सलों को ज़रूरत 'राही'
बादलों में वहीं सूरज कहीं रू-पोश रहा