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वाडा शायरी | शाही शायरी

वाडा

50 शेर

मुझे कल के वादे पे करते हैं रुख़्सत
कोई वादा पूरा हुआ चाहता है

अल्ताफ़ हुसैन हाली




वो उम्मीद क्या जिस की हो इंतिहा
वो व'अदा नहीं जो वफ़ा हो गया

अल्ताफ़ हुसैन हाली




फिर बैठे बैठे वादा-ए-वस्ल उस ने कर लिया
फिर उठ खड़ा हुआ वही रोग इंतिज़ार का

अमीर मीनाई




वो और वा'दा वस्ल का क़ासिद नहीं नहीं
सच सच बता ये लफ़्ज़ उन्हीं की ज़बाँ के हैं

अमीर मीनाई




उस के वादों से इतना तो साबित हुआ उस को थोड़ा सा पास-ए-तअल्लुक़ तो है
ये अलग बात है वो है वादा-शिकन ये भी कुछ कम नहीं उस ने वादे किए

आमिर उस्मानी




बाज़ वादे किए नहीं जाते
फिर भी उन को निभाया जाता है

अंजुम ख़याली




था व'अदा शाम का मगर आए वो रात को
मैं भी किवाड़ खोलने फ़ौरन नहीं गया

अनवर शऊर