खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मेरी
जी में ये किस का तसव्वुर आ गया
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मिरी
जी में ये किस का तसव्वुर आ गया
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
पूरी होती हैं तसव्वुर में उमीदें क्या क्या
दिल में सब कुछ है मगर पेश-ए-नज़र कुछ भी नहीं
लाला माधव राम जौहर
तसव्वुर ज़ुल्फ़ का है और मैं हूँ
बला का सामना है और मैं हूँ
लाला माधव राम जौहर
उन का ग़म उन का तसव्वुर उन की याद
कट रही है ज़िंदगी आराम से
महशर इनायती
हैं तसव्वुर में उस के आँखें बंद
लोग जानें हैं ख़्वाब करता हूँ
मीर मोहम्मदी बेदार
बिछड़ कर उस से सीखा है तसव्वुर को बदन करना
अकेले में उसे छूना अकेले में सुख़न करना
नश्तर ख़ानक़ाही