जो तसव्वुर से मावरा न हुआ
वो तो बंदा हुआ ख़ुदा न हुआ
इक़बाल सुहैल
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मैं जब भी उस के ख़यालों में खो सा जाता हूँ
वो ख़ुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे
जाँ निसार अख़्तर
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तेरे ख़याल के दीवार-ओ-दर बनाते हैं
हम अपने घर में भी तेरा ही घर बनाते हैं
जमीलुद्दीन आली
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लब-ए-ख़याल से उस लब का जो लिया बोसा
तो मुँह ही मुँह में अजब तरह का मज़ा आया
जुरअत क़लंदर बख़्श
मैं कि तेरे ध्यान में गुम था
दुनिया मुझ को ढूँढ रही थी
करामत बुख़ारी
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जाने क्यूँ इक ख़याल सा आया
मैं न हूँगा तो क्या कमी होगी
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
मैं ने तो तसव्वुर में और अक्स देखा था
फ़िक्र मुख़्तलिफ़ क्यूँ है शाएरी के पैकर में
ख़ुशबीर सिंह शाद
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