जाँ-बख़्श लब के इश्क़ में ईज़ा उठाइए
बीमार हो के नाज़-ए-मसीहा उठाइए
क़ुदसी निगाह-ए-लुत्फ़ के उम्मीद-वार हैं
आँखें तो सू-ए-आलम-ए-बाला उठाइए
अब के बहार में जो हमें ले चले जुनूँ
चुन चुन के दाग़-ए-लाला-ए-सहरा उठाइए
ख़ामा से काम लीजिए हंगाम-ए-फ़िक्र-ए-शेर
मैदान-ए-कार-ज़ार में घोड़ा उठाइए
दिखलाए हुस्न-ए-यार का जल्वा हमें जो इश्क़
किस किस तरह से लुत्फ़-ए-तमाशा उठाइए
तुझ सा हसीं हो यार तो क्यूँ-कर न उस के फिर
नाज़-ए-बजा ओ ग़म्ज़ा-ए-बेजा उठाइए
मुफ़्लिस हूँ लाख पर यही दिल को बंधी है धुन
यूसुफ़ को क़र्ज़ ले के तक़ाज़ा उठाइए
फ़स्ल-ए-बहार आई पियो सूफ़ियो शराब
बस हो चुकी नमाज़ मुसल्ला उठाइए
जाम-ए-शराब-ए-नाब है साक़ी लिए खड़ा
गर्दन तो मिस्ल-ए-गर्दन-ए-मीना उठाइए
आवाज़ को सुना के किए कान मुस्तफ़ीज़
रहम आँखों पर भी कीजिए पर्दा उठाइए
जोश-ए-जुनूँ में देखिए पीछे न मुड़ के फिर
मुँह जिस तरफ़ को सूरत-ए-दरिया उठाइए
शमशीर-ज़न हो यार बहादुर जवान हो
'आतिश' जिहाद-ए-इश्क़ पे बेड़ा उठाइए
ग़ज़ल
जाँ-बख़्श लब के इश्क़ में ईज़ा उठाइए
हैदर अली आतिश