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फिरता रहता हूँ मैं हर लहज़ा पस-ए-जाम-ए-शराब | शाही शायरी
phirta rahta hun main har lahza pas-e-jam-e-sharab

ग़ज़ल

फिरता रहता हूँ मैं हर लहज़ा पस-ए-जाम-ए-शराब

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

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फिरता रहता हूँ मैं हर लहज़ा पस-ए-जाम-ए-शराब
मुझ को बद-नाम करेगी हवस-ए-जाम-ए-शराब

क़ाफ़िला ऐश का तय्यार है रिंदों के लिए
क़ुल्क़ुल-ए-शीशा-ए-मय है जरस-ए-जाम-ए-शराब

जुम्बिश-ए-बाद-ए-सहर से है तमव्वुज मय में
क़ुव्वत-ए-जान-ए-हज़ीं है नफ़स-ए-जाम-ए-शराब

ख़म लुंढा दूँ तो न चकराए कभी सर मेरा
एक जुरआ में गया बुल-हवस-ए-जाम-ए-शराब

मुझ से पूछो असर-ए-बादा-ए-गुल-गूँ वाइज़
मैं हूँ रिंदों में बहुत नुक्ता-रस-ए-जाम-ए-शराब

टिकटिकी बाँध के देखा किया इतना कि बना
साया-ए-मर्दुम-ए-दीदा मगस-ए-जाम-ए-शराब

मय न हो बू ही सही कुछ तो हो रिंदों के लिए
इसी हीले से बुझेगी हवस-ए-जाम-ए-शराब

ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं के लिए बू जो चली आती है
है नसीम-ए-सहरी हम-नफ़स-ए-जाम-ए-शराब

हम ने रिंदों का मक़ूला ये सुना है 'शैदा'
सोहबत-ए-ऐश में ज़ाहिद है ख़स-ए-जाम-ए-शराब