हाए वो राज़-ए-ग़म कि जो अब तक
तेरे दिल में मिरी निगाह में है
जिगर मुरादाबादी
झुकती है निगाह उस की मुझ से मिल कर
दीवार से धूप उतर रही है गोया
जोश मलसियानी
ख़ुदा बचाए तिरी मस्त मस्त आँखों से
फ़रिश्ता हो तो बहक जाए आदमी क्या है
ख़ुमार बाराबंकवी
साक़ी मिरे भी दिल की तरफ़ टुक निगाह कर
लब-तिश्ना तेरी बज़्म में ये जाम रह गया
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
देखा हुज़ूर को जो मुकद्दर तो मर गए
हम मिट गए जो आप ने मैली निगाह की
लाला माधव राम जौहर
तड़प रहा है दिल इक नावक-ए-जफ़ा के लिए
उसी निगाह से फिर देखिए ख़ुदा के लिए
लाला माधव राम जौहर
हाल कह देते हैं नाज़ुक से इशारे अक्सर
कितनी ख़ामोश निगाहों की ज़बाँ होती है
महेश चंद्र नक़्श