पड़ गई क्या निगह-ए-मस्त तिरे साक़ी की
लड़खड़ाते हुए मय-ख़्वार चले आते हैं
तअशशुक़ लखनवी
नज़र भर के जो देख सकते हैं तुझ को
मैं उन की नज़र देखना चाहता हूँ
ताजवर नजीबाबादी
51 शेर
पड़ गई क्या निगह-ए-मस्त तिरे साक़ी की
लड़खड़ाते हुए मय-ख़्वार चले आते हैं
तअशशुक़ लखनवी
नज़र भर के जो देख सकते हैं तुझ को
मैं उन की नज़र देखना चाहता हूँ
ताजवर नजीबाबादी