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Nigaah शायरी | शाही शायरी

Nigaah

51 शेर

पड़ गई क्या निगह-ए-मस्त तिरे साक़ी की
लड़खड़ाते हुए मय-ख़्वार चले आते हैं

तअशशुक़ लखनवी




नज़र भर के जो देख सकते हैं तुझ को
मैं उन की नज़र देखना चाहता हूँ

ताजवर नजीबाबादी