बिन तुम्हारे कभी नहीं आई
क्या मिरी नींद भी तुम्हारी है
जौन एलिया
कल रात जगाती रही इक ख़्वाब की दूरी
और नींद बिछाती रही बिस्तर मिरे आगे
काशिफ़ हुसैन ग़ाएर
नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है
उन की आग़ोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं
E'en on a bed of pain, sleep well could come
In her arms,merely, recumbent, it need not be
ख़ामोश ग़ाज़ीपुरी
कू-ए-जानाँ से जो उठता हूँ तो सो जाते हैं पाँव
दफ़अ'तन आँखों से पाँव में उतर आती है नींद
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी
कभी दिखा दे वो मंज़र जो मैं ने देखे नहीं
कभी तो नींद में ऐ ख़्वाब के फ़रिश्ते आ
कुमार पाशी
नींद आँख में भरी है कहाँ रात भर रहे
किस के नसीब तुम ने जगाए किधर रहे
लाला माधव राम जौहर
बड़ी तवील है 'महशर' किसी के हिज्र की बात
कोई ग़ज़ल ही सुनाओ कि नींद आ जाए
महशर इनायती