चूँ शम-ए-सोज़ाँ चूँ ज़र्रा हैराँ ज़े मेहर-ए-आँ-मह बगश्तम आख़िर
न नींद नैनाँ न अंग चैनाँ न आप आवे न भेजे पतियाँ
अमीर ख़ुसरो
नींद का काम गरचे आना है
मेरी आँखों में पर नहीं आती
अनवर देहलवी
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हमारे ख़्वाब चोरी हो गए हैं
हमें रातों को नींद आती नहीं है
बख़्श लाइलपूरी
कैसा जादू है समझ आता नहीं
नींद मेरी ख़्वाब सारे आप के
इब्न-ए-मुफ़्ती
आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा
आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई
इक़बाल अशहर
उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए
कि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए
इरफ़ान सिद्दीक़ी
मौत बर-हक़ है एक दिन लेकिन
नींद रातों को ख़ूब आती है
जमाल ओवैसी