मिरे दिल के अकेले घर में 'राहत'
उदासी जाने कब से रह रही है
हुमैरा राहत
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रात आ कर गुज़र भी जाती है
इक हमारी सहर नहीं होती
इब्न-ए-इंशा
मिरे घर से ज़ियादा दूर सहरा भी नहीं लेकिन
उदासी नाम ही लेती नहीं बाहर निकलने का
इक़बाल साजिद
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उदासियाँ हैं जो दिन में तो शब में तन्हाई
बसा के देख लिया शहर-ए-आरज़ू मैं ने
जुनैद हज़ीं लारी
ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास
सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए
ख़ुमार बाराबंकवी
बहुत दिनों से मिरे बाम-ओ-दर का हिस्सा है
मिरी तरह ये उदासी भी घर का हिस्सा है
ख़ुशबीर सिंह शाद
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देखते हैं बे-नियाज़ाना गुज़र सकते नहीं
कितने जीते इस लिए होंगे कि मर सकते नहीं
महबूब ख़िज़ां