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बहुत दिनों से मिरे बाम-ओ-दर का हिस्सा है | शाही शायरी
bahut dinon se mere baam-o-dar ka hissa hai

ग़ज़ल

बहुत दिनों से मिरे बाम-ओ-दर का हिस्सा है

ख़ुशबीर सिंह शाद

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बहुत दिनों से मिरे बाम-ओ-दर का हिस्सा है
मिरी तरह ये उदासी भी घर का हिस्सा है

फिर इस के बाद हवा और उस का रहम ओ करम
अभी तलक तो ये पत्ता शजर का हिस्सा है

ज़रूर दिल से कोई राब्ता है आँखों का
इसी लिए तो लहू चश्म-ए-तर का हिस्सा है

ये तेरा ताज नहीं है हमारी पगड़ी है
ये सर के साथ ही उतरेगी सर का हिस्सा है

न जाने 'शाद' तिरी कब समझ में आएगा
कि अब ज़मीर-फ़रोशी हुनर का हिस्सा है