बड़े सुकून से अफ़्सुर्दगी में रहता हूँ
मैं अपने सामने वाली गली में रहता हूँ
आबिद मलिक
कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दिया
उदासी की मेहनत ठिकाने लगी
आदिल मंसूरी
रोने लगता हूँ मोहब्बत में तो कहता है कोई
क्या तिरे अश्कों से ये जंगल हरा हो जाएगा
अहमद मुश्ताक़
कुछ इतने हो गए मानूस सन्नाटों से हम 'अख़्तर'
गुज़रती है गिराँ अपनी सदा भी अब तो कानों पर
अख़्तर होशियारपुरी
किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में
मिरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं
अख़्तर सईद ख़ान
उठते नहीं हैं अब तो दुआ के लिए भी हाथ
किस दर्जा ना-उमीद हैं परवरदिगार से
अख़्तर शीरानी
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
अल्लामा इक़बाल