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इश्क शायरी | शाही शायरी

इश्क

422 शेर

आख़री हिचकी तिरे ज़ानूँ पे आए
मौत भी मैं शाइराना चाहता हूँ

क़तील शिफ़ाई




चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी
वगरना हम ज़माने भर को समझाने कहाँ जाते

twas a good thing that my madness was to some avail
else, for my state, what other reason could the world I show?

क़तील शिफ़ाई




दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं
लोग अब मुझ को तिरे नाम से पहचानते हैं

क़तील शिफ़ाई




गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं

I burn up in the flames of unfulfilled desire
like lanterns are, at eventide I am set afire

क़तील शिफ़ाई




हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएँगे
अभी कुछ बे-क़रारी है सितारो तुम तो सो जाओ

क़तील शिफ़ाई




जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मिरे नाम से जल जाते हैं

whenever my name happens to be linked to thee
I wonder why these people burn with jealousy

क़तील शिफ़ाई




किस तरह अपनी मोहब्बत की मैं तकमील करूँ
ग़म-ए-हस्ती भी तो शामिल है ग़म-ए-यार के साथ

क़तील शिफ़ाई