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इश्क शायरी | शाही शायरी

इश्क

422 शेर

तुम से मिलती-जुलती मैं आवाज़ कहाँ से लाऊँगा
ताज-महल बन जाए अगर मुम्ताज़ कहाँ से लाऊँगा

साग़र आज़मी




क्यूँ मेरी तरह रातों को रहता है परेशाँ
ऐ चाँद बता किस से तिरी आँख लड़ी है

साहिर लखनवी




आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं

साहिर लुधियानवी




अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिब
अभी हयात का माहौल ख़ुश-गवार नहीं

साहिर लुधियानवी




अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत में
कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैं ने

साहिर लुधियानवी




अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं
तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी

at my own destruction I do not moan or weep
for faith at least with someone, you managed to keep

साहिर लुधियानवी




चंद कलियाँ नशात की चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ

साहिर लुधियानवी