दिल के दो हिस्से जो कर डाले थे हुस्न-ओ-इश्क़ ने
एक सहरा बन गया और एक गुलशन हो गया
नूह नारवी
इश्क़ में कुछ नज़र नहीं आया
जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है
नूह नारवी
अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की
मरने की दुआ माँगी जीने की सज़ा पाई
नुशूर वाहिदी
एक रिश्ता भी मोहब्बत का अगर टूट गया
देखते देखते शीराज़ा बिखर जाता है
नुशूर वाहिदी
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
उबैदुल्लाह अलीम
ज़मीं के लोग तो क्या दो दिलों की चाहत में
ख़ुदा भी हो तो उसे दरमियान लाओ मत
उबैदुल्लाह अलीम
मैं उस की दस्तरस में हूँ मगर वो
मुझे मेरी रज़ा से माँगता है
परवीन शाकिर