दोस्तों से मुलाक़ात की शाम है
ये सज़ा काट कर अपने घर जाऊँगा
मज़हर इमाम
वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
जो पिछली रात से याद आ रहा है
नासिर काज़मी
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
देखना है खींचता है मुझ पे पहला तीर कौन
परवीन शाकिर
वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
दग़ा करे वो किसी से तो शर्म आए मुझे
क़तील शिफ़ाई
यूँ लगे दोस्त तिरा मुझ से ख़फ़ा हो जाना
जिस तरह फूल से ख़ुशबू का जुदा हो जाना
क़तील शिफ़ाई
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
राहत इंदौरी
हम को अग़्यार का गिला क्या है
ज़ख़्म खाएँ हैं हम ने यारों से
why should enemies be my reason to complain
when at the hands of friends, I have suffered pain
साहिर होशियारपुरी