ऐ दोस्त तुझ को रहम न आए तो क्या करूँ
दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा है
लाला माधव राम जौहर
दोस्त दिल रखने को करते हैं बहाने क्या किया
रोज़ झूटी ख़बर-ए-वस्ल सुना जाते हैं
लाला माधव राम जौहर
दोस्त दो-चार निकलते हैं कहीं लाखों में
जितने होते हैं सिवा उतने ही कम होते हैं
लाला माधव राम जौहर
जो दोस्त हैं वो माँगते हैं सुल्ह की दुआ
दुश्मन ये चाहते हैं कि आपस में जंग हो
लाला माधव राम जौहर
बहुत ज़ख़ीम किताबों से चुन के लाया हूँ
इन्हें पढ़ो वरक़-ए-इंतिख़ाब हैं मिरे दोस्त
लियाक़त अली आसिम
ज़मानों बा'द मिले हैं तो कैसे मुँह फेरूँ
मिरे लिए तो पुरानी शराब हैं मिरे दोस्त
लियाक़त अली आसिम
अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल है
दिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए
माहिर-उल क़ादरी