जग में कोई न टुक हँसा होगा
कि न हँसते में रो दिया होगा
उन ने क़स्दन भी मेरे नाले को
न सुना होगा गर सुना होगा
देखिए अब के ग़म से जी मेरा
न बचेगा बचेगा क्या होगा
दिल ज़माने के हाथ से सालिम
कोई होगा जो रह गया होगा
हाल मुझ ग़म-ज़दा का जिस तिस ने
जब सुना होगा रो दिया होगा
दिल के फिर ज़ख़्म ताज़ा होते हैं
कहीं ग़ुंचा कोई खिला होगा
यक-ब-यक नाम ले उठा मेरा
जी में क्या उस के आ गया होगा
मेरे नालों पे कोई दुनिया में
बिन किए आह कम रहा होगा
लेकिन उस को असर ख़ुदा जाने
न हुआ होगा या हुआ होगा
क़त्ल से मेरे वो जो बाज़ रहा
किसी बद-ख़्वाह ने कहा होगा
दिल भी ऐ 'दर्द' क़तरा-ए-ख़ूँ था
आँसुओं में कहीं गिरा होगा
ग़ज़ल
जग में कोई न टुक हँसा होगा
ख़्वाजा मीर 'दर्द'