जो ज़ख़्म देता है तो बे-असर ही देता है
ख़लिश वो दे कि जिसे भूल भी न पाऊँ मैं
खलील तनवीर
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दर्द का ज़ाइक़ा बताऊँ क्या
ये इलाक़ा ज़बाँ से बाहर है
खुर्शीद अकबर
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की तर्क-ए-मोहब्बत तो लिया दर्द-ए-जिगर मोल
परहेज़ से दिल और भी बीमार पड़ा है
लाला माधव राम जौहर
दर्द हो दिल में तो दवा कीजे
और जो दिल ही न हो तो क्या कीजे
मंज़र लखनवी
ग़म में कुछ ग़म का मशग़ला कीजे
दर्द की दर्द से दवा कीजे
मंज़र लखनवी
भीगी मिट्टी की महक प्यास बढ़ा देती है
दर्द बरसात की बूँदों में बसा करता है
मरग़ूब अली
दर्द-ए-दिल क्या बयाँ करूँ 'रश्की'
उस को कब ए'तिबार आता है
मोहम्मद अली ख़ाँ रश्की