दुश्मन-ए-जाँ ही सही साथ तो इक उम्र का है
दिल से अब दर्द की रुख़्सत नहीं देखी जाती
अख़्तर सईद ख़ान
दिल में लेता है चुटकियाँ कोई
हाए इस दर्द की दवा क्या है
अख़्तर शीरानी
दर्द बढ़ कर दवा न हो जाए
ज़िंदगी बे-मज़ा न हो जाए
अलीम अख़्तर
दर्द का फिर मज़ा है जब 'अख़्तर'
दर्द ख़ुद चारासाज़ हो जाए
अलीम अख़्तर
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लज़्ज़त-ए-दर्द मिली इशरत-ए-एहसास मिली
कौन कहता है हम उस बज़्म से नाकाम आए
अली जव्वाद ज़ैदी
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शब के सन्नाटे में ये किस का लहू गाता है
सरहद-ए-दर्द से ये किस की सदा आती है
अली सरदार जाफ़री
इक दर्द हो बस आठ पहर दिल में कि जिस को
तख़फ़ीफ़ दवा से हो न तस्कीन दुआ से
अल्ताफ़ हुसैन हाली
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