हिचकियाँ रात दर्द तन्हाई
आ भी जाओ तसल्लियाँ दे दो
नासिर जौनपुरी
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया
नासिर काज़मी
ज़ख़्म कितने तिरी चाहत से मिले हैं मुझ को
सोचता हूँ कि कहूँ तुझ से मगर जाने दे
नज़ीर बाक़री
बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता
निदा फ़ाज़ली
ये हमीं हैं कि तिरा दर्द छुपा कर दिल में
काम दुनिया के ब-दस्तूर किए जाते हैं
tis only I who with your ache, in my heart replete
silently the tasks assigned, do sincerely complete
सबा अकबराबादी
वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता
दर्द कुछ होते हैं ता-उम्र रुलाने वाले
सदा अम्बालवी
तुम थे तो हर इक दर्द तुम्हीं से था इबारत
अब ज़िंदगी ख़ानों में बसर होने लगी है
सरफ़राज़ ख़ालिद