दर्द हो दिल में तो दवा कीजे
और जो दिल ही न हो तो क्या कीजे
ग़म में कुछ ग़म का मशग़ला कीजे
दर्द की दर्द से दवा कीजे
आप और अहद-ए-पुर-वफ़ा कीजे
तौबा तौबा ख़ुदा ख़ुदा कीजे
देखता हूँ जो हश्र के आसार
अपने तेवर मुलाहिज़ा कीजे
नज़र-ए-इल्तिफ़ात बन गई मौत
मिरी क़िस्मत को आप क्या कीजे
देखिए मुक़तज़ा-ए-हाल-ए-मरीज़
अब दवा छोड़िए दवा कीजे
चार दिन की हयात में 'मंज़र'
क्यूँ किसी से भी दिल बुरा कीजे
ग़ज़ल
दर्द हो दिल में तो दवा कीजे
मंज़र लखनवी