सब अपने अपने तरीक़े से भीक माँगते हैं
कोई ब-नाम-ए-मोहब्बत कोई ब-जामा-ए-इश्क़
आबिद वदूद
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सर पर गिरे मकान का मलबा ही रख लिया
दुनिया के क़ीमती सर-ओ-सामान से गए
आबिद वदूद
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शहर ये सायों का है इस में बनी-आदम कहाँ
अब किसी सूरत यहाँ इंसान होना चाहिए
आबिद वदूद
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तिरे हाथों में है तिरी क़िस्मत
तिरी इज़्ज़त तिरे ही काम से है
आबिद वदूद
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यज़ीद-ए-वक़्त ने अब के लगाई है क़दग़न
कि भूल कर भी न गाए कोई तराना-ए-इश्क़
आबिद वदूद
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सोचता हूँ कुछ अमल करता हूँ कुछ
मुझ में कोई दूसरा मौजूद है
अबरार आबिद
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भर लाए हैं हम आँख में रखने को मुक़ाबिल
इक ख़्वाब-ए-तमन्ना तिरी ग़फ़लत के बराबर
अबरार अहमद