ज़ख़्म और पेड़ ने इक साथ दुआ माँगी है
देखिए पहले यहाँ कौन हरा होता है
आबिद मलिक
क्यूँ न अपनी ख़ूबी-ए-क़िस्मत पे इतराती हवा
फूल जैसे इक बदन को छू कर आई थी हवा
आबिद मुनावरी
दम के दम में दुनिया बदली भीड़ छटी कोहराम उठा
चलते चलते साँस रुकी और ख़त्म हुआ अफ़्साना भी
आबिद नामी
ये आज कौन सी तक़्सीर हो गई 'नामी'
कि दोस्त भी तो मिलाते नहीं नज़र हम से
आबिद नामी
उस के डर ही से मैं मोहज़्ज़ब हूँ
मेरे अंदर जो एक वहशी है
आबिद सिद्दीक़
कफ़-ए-ख़िज़ाँ पे खिला मैं इस ए'तिबार के साथ
कि हर नुमू का तअल्लुक़ नहीं बहार के साथ
आबिद सयाल
यहाँ वहाँ हैं कई ख़्वाब जगमगाते हुए
कहीं कहीं कोई ताबीर टिमटिमाती हुई
आबिद सयाल