हर रुख़ है कहीं अपने ख़द-ओ-ख़ाल से बाहर
हर लफ़्ज़ है कुछ अपने मआनी से ज़ियादा
अबरार अहमद
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
जिस काम में हम ने हाथ डाला
वो काम मुहाल हो गया है
अबरार अहमद
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
जो भी यकजा है बिखरता नज़र आता है मुझे
जाने यूँ है भी कि ऐसा नज़र आता है मुझे
अबरार अहमद
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
कभी तो ऐसा है जैसे कहीं पे कुछ भी नहीं
कभी ये लगता है जैसे यहाँ वहाँ कोई है
अबरार अहमद
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
कहीं कोई चराग़ जलता है
कुछ न कुछ रौशनी रहेगी अभी
अबरार अहमद
कि जैसे कुंज-ए-चमन से सबा निकलती है
तिरे लिए मेरे दिल से दुआ निकलती है
अबरार अहमद
टैग:
| दुआ |
| 2 लाइन शायरी |
मैं ठहरता गया रफ़्ता रफ़्ता
और ये दिल अपनी रवानी में रहा
अबरार अहमद
टैग:
| दिल |
| 2 लाइन शायरी |