ख़मोशी मेरी लय में गुनगुनाना चाहती है
किसी से बात करने का बहाना चाहती है
अब्दुर रऊफ़ उरूज
नफ़स के लोच को ख़ंजर बनाना चाहती है
मोहब्बत अपनी तेज़ी आज़माना चाहती है
अब्दुर रऊफ़ उरूज
ये तबस्सुम का उजाला ये निगाहों की सहर
लोग यूँ भी तो छुपाते हैं अंधेरे दिल में
अब्दुर रऊफ़ उरूज
ज़िंदगी अज़्मत-ए-हाज़िर के बग़ैर
इक तसलसुल है मगर ख़्वाबों का
अब्दुर रऊफ़ उरूज
ज़ुल्मतें वहशत-ए-फ़र्दा से निढाल
ढूँढती फिरती हैं घर ख़्वाबों का
अब्दुर रऊफ़ उरूज
तू ने मुझ को बना दिया इंसाँ
मैं ने तुझ को ख़ुदा बनाया है
अब्दुर्रहमान मोमिन
अपनी नामूस की आती है हिफ़ाज़त जिन को
जान दे देते हैं दस्तार नहीं देते हैं
अब्दुश्शुकूर आसी