वही क़ातिल वही मुंसिफ़ बना है
उसी से फ़ैसला ठहरा हुआ है
अब्दुस्समद ’तपिश’
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वक़्त के दामन में कोई
अपनी एक कहानी रख
अब्दुस्समद ’तपिश’
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वो बड़ा था फिर भी वो इस क़दर बे-फ़ैज़ था
उस घनेरे पेड़ में जैसे कोई साया न था
अब्दुस्समद ’तपिश’
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ये मैं हूँ ख़ुद कि कोई और है तआक़ुब में
ये एक साया पस-ए-रहगुज़ार किस का है
अब्दुस्समद ’तपिश’
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हमीं जहान के पीछे पड़े रहें कब तक
हमारे पीछे कभी ये जहान भी पड़ता
अभिषेक शुक्ला
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कभी कभी तो ये वहशत भी हम पे गुज़री है
कि दिल के साथ ही देखा है डूबना शब का
अभिषेक शुक्ला
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मैं चोट कर तो रहा हूँ हवा के माथे पर
मज़ा तो जब था कि कोई निशान भी पड़ता
अभिषेक शुक्ला
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