अब निशाना उस की अपनी ज़ात है
लड़ रहा है इक अनोखी जंग वो
अब्दुस्समद ’तपिश’
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हवा-ए-तुंद कैसी चल पड़ी है
शजर पर एक भी पत्ता नहीं है
अब्दुस्समद ’तपिश’
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जफ़ा के ज़िक्र पे वो बद-हवास कैसा है
ज़रा सी बात थी लेकिन उदास कैसा है
अब्दुस्समद ’तपिश’
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जहाँ तक पाँव मेरे जा सके हैं
वहीं तक रास्ता ठहरा हुआ है
अब्दुस्समद ’तपिश’
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कौन पत्थर उठाए
ये शजर बे-समर है
अब्दुस्समद ’तपिश’
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कोई कॉलम नहीं है हादसों पर
बचा कर आज का अख़बार रखना
अब्दुस्समद ’तपिश’
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कुछ हक़ाएक़ के ज़िंदा पैकर हैं
लफ़्ज़ में क्या बयान में क्या है
अब्दुस्समद ’तपिश’
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