आप के जाते ही हम को लग गई आवारगी
आप के जाते ही हम से घर नहीं देखा गया
अब्दुल्लाह जावेद
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अश्क ढलते नहीं देखे जाते
दिल पिघलते नहीं देखे जाते
अब्दुल्लाह जावेद
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देखते हम भी हैं कुछ ख़्वाब मगर हाए रे दिल
हर नए ख़्वाब की ता'बीर से डर जाता है
अब्दुल्लाह जावेद
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हर इक रस्ते पे चल कर सोचते हैं
ये रस्ता जा रहा है अपने घर क्या
अब्दुल्लाह जावेद
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इस ही बुनियाद पर क्यूँ न मिल जाएँ हम
आप तन्हा बहुत हम अकेले बहुत
अब्दुल्लाह जावेद
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जब थी मंज़िल नज़र में तो रस्ता था एक
गुम हुई है जो मंज़िल तो रस्ते बहुत
अब्दुल्लाह जावेद
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कभी सोचा है मिट्टी के अलावा
हमें कहते हैं ये दीवार-ओ-दर क्या
अब्दुल्लाह जावेद
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