EN اردو
2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

दिल की हालत बयाँ नहीं होती
ख़ामुशी जब ज़बाँ नहीं होती

अब्दुल सलाम




जो ये हिन्दोस्ताँ नहीं होता
तो ये उर्दू ज़बाँ नहीं होती

अब्दुल सलाम




शेर कहने की तबीअत न रही
जिस से आमद थी वो सूरत न रही

अब्दुल सलाम




इश्क़ का तिफ़्ल गिर ज़मीं ऊपर
खेल सीखा है ख़ाक-बाज़ी का

अब्दुल वहाब यकरू




इश्क़ के फ़न नीं हूँ मैं अवधूत
तिरे दर पे बिठा हूँ मल के भभूत

अब्दुल वहाब यकरू




जब कि पहरा है तीं लिबास ज़र्रीं
इक क़द-आदम हुई है आग बुलंद

अब्दुल वहाब यकरू




जने देखा सो ही बौरा हुआ है
तिरे तिल हैं मगर काला धतूरा

अब्दुल वहाब यकरू