दिल की हालत बयाँ नहीं होती
ख़ामुशी जब ज़बाँ नहीं होती
अब्दुल सलाम
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जो ये हिन्दोस्ताँ नहीं होता
तो ये उर्दू ज़बाँ नहीं होती
अब्दुल सलाम
शेर कहने की तबीअत न रही
जिस से आमद थी वो सूरत न रही
अब्दुल सलाम
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इश्क़ का तिफ़्ल गिर ज़मीं ऊपर
खेल सीखा है ख़ाक-बाज़ी का
अब्दुल वहाब यकरू
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इश्क़ के फ़न नीं हूँ मैं अवधूत
तिरे दर पे बिठा हूँ मल के भभूत
अब्दुल वहाब यकरू
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जब कि पहरा है तीं लिबास ज़र्रीं
इक क़द-आदम हुई है आग बुलंद
अब्दुल वहाब यकरू
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जने देखा सो ही बौरा हुआ है
तिरे तिल हैं मगर काला धतूरा
अब्दुल वहाब यकरू
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