अश्क ढलते नहीं देखे जाते
दिल पिघलते नहीं देखे जाते
फूल दुश्मन के हों या अपने हों
फूल जलते नहीं देखे जाते
तितलियाँ हाथ भी लग जाएँ तो
पर मसलते नहीं देखे जाते
जब्र की धूप से तपती सड़कें
लोग चलते नहीं देखे जाते
ख़्वाब-दुश्मन हैं ज़माने वाले
ख़्वाब पलते नहीं देखे जाते
देख सकते हैं बदलता सब कुछ
दिल बदलते नहीं देखे जाते
कर्बला में रुख़-ए-असग़र की तरफ़
तीर चलते नहीं देखे जाते
ग़ज़ल
अश्क ढलते नहीं देखे जाते
अब्दुल्लाह जावेद