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दिल की हालत बयाँ नहीं होती | शाही शायरी
dil ki haalat bayan nahin hoti

ग़ज़ल

दिल की हालत बयाँ नहीं होती

अब्दुल सलाम

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दिल की हालत बयाँ नहीं होती
ख़ामुशी जब ज़बाँ नहीं होती

हर्फ़-ए-हसरत है तुम ने क्या समझा
ज़िंदगी दास्ताँ नहीं होती

क्या मुक़ाबिल हो हुस्न-ए-जानाँ के
चाँदनी बे-कराँ नहीं होती

तुम जो आओ तो हो जवाँ महफ़िल
वर्ना कब कहकशाँ नहीं होती

हुस्न की बे-रुख़ी अदा ठहरी
आशिक़ी बद-गुमाँ नहीं होती

बे-क़रारी की बस दवा तुम हो
ये तबीबों के हाँ नहीं होती

जो ये हिन्दोस्ताँ नहीं होता
तो ये उर्दू ज़बाँ नहीं होती

कुछ मरासिम 'सलाम' रहने दे
दुश्मनी जावेदाँ नहीं होती