मशहूर इक सवाल किया था करीम ने
मुझ से वहाँ भी आप की तारीफ़ हो गई
अब्दुल हमीद अदम
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मुद्दआ दूर तक गया लेकिन
आरज़ू लौट कर नहीं आई
अब्दुल हमीद अदम
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मुझे तौबा का पूरा अज्र मिलता है उसी साअत
कोई ज़ोहरा-जबीं पीने पे जब मजबूर करता है
अब्दुल हमीद अदम
नौजवानी में पारसा होना
कैसा कार-ए-ज़बून है प्यारे
अब्दुल हमीद अदम
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पहले बड़ी रग़बत थी तिरे नाम से मुझ को
अब सुन के तिरा नाम मैं कुछ सोच रहा हूँ
अब्दुल हमीद अदम
फिर आज 'अदम' शाम से ग़मगीं है तबीअत
फिर आज सर-ए-शाम मैं कुछ सोच रहा हूँ
अब्दुल हमीद अदम
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पीर-ए-मुग़ाँ से हम को कोई बैर तो नहीं
थोड़ा सा इख़्तिलाफ़ है मर्द-ए-ख़ुदा के साथ
अब्दुल हमीद अदम
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