हर बात है 'ख़ालिद' की ज़माने से निराली
बाशिंदा है शायद किसी दुनिया-ए-दिगर का
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
मस्जिद में गर गुज़र न हुआ दैर ही सही
बेकार बैठे क्यूँ रहें इक सैर ही सही
अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़
पीरी में शौक़ हौसला-फ़रसा नहीं रहा
वो दिल नहीं रहा वो ज़माना नहीं रहा
अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़
उन के दिल की कुदूरत और बढ़ी
ज़िक्र कीजिए अगर सफ़ाई का
अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़
ज़ाहिरन मौत है क़ज़ा है इश्क़
पर हक़ीक़त में जाँ-फ़ज़ाँ है इश्क़
अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़
हुस्न इक दरिया है सहरा भी हैं उस की राह में
कल कहाँ होगा ये दरिया ये भी तो सोचो ज़रा
अब्दुल हफ़ीज़ नईमी
खड़ा हुआ हूँ सर-ए-राह मुंतज़िर कब से
कि कोई गुज़रे तो ग़म का ये बोझ उठवा दे
अब्दुल हफ़ीज़ नईमी