लौट गए सब सोच के घर में कोई नहीं है
और ये हम कि अंधेरा कर के बैठ गए हैं
अब्दुल हमीद
लोगों ने बहुत चाहा अपना सा बना डालें
पर हम ने कि अपने को इंसान बहुत रक्खा
अब्दुल हमीद
पाँव रुकते ही नहीं ज़ेहन ठहरता ही नहीं
कोई नश्शा है थकन का कि उतरता ही नहीं
अब्दुल हमीद
उतरे थे मैदान में सब कुछ ठीक करेंगे
सब कुछ उल्टा सीधा कर के बैठ गए हैं
अब्दुल हमीद
ये क़ैद है तो रिहाई भी अब ज़रूरी है
किसी भी सम्त कोई रास्ता मिले तो सही
अब्दुल हमीद
ज़वाल-ए-जिस्म को देखो तो कुछ एहसास हो इस का
बिखरता ज़र्रा ज़र्रा कोई सहरा कैसा लगता है
अब्दुल हमीद
आँख का ए'तिबार क्या करते
जो भी देखा वो ख़्वाब में देखा
अब्दुल हमीद अदम