नक़्श-ए-दिल है सितम जुदाई का 
शौक़ फिर किस को आश्नाई का 
चखते हैं अब मज़ा जुदाई का 
ये नतीजा है आश्नाई का 
उन के दिल की कुदूरत और बढ़ी 
ज़िक्र कीजिए अगर सफ़ाई का 
देख तो संग-ए-आस्ताँ पे तिरे 
है निशाँ किस की जब्हा-साई का 
तेरे दर का गदा जो है ऐ दोस्त 
ऐश करता है बादशाई का 
दुख़्तर-ए-रज़ ने कर दिया बातिल 
मुझ को दावा था पारसाई का 
करते हैं अहल-ए-आसमाँ चर्चा 
मेरे नालों की ना-रसाई का 
काट डालो अगर ज़बाँ पे मिरे 
हर्फ़ आया हो आश्नाई का 
कर के सदक़े न छोड़ दें 'नस्साख़' 
दिल को धड़का है क्यूँ रिहाई का
        ग़ज़ल
नक़्श-ए-दिल है सितम जुदाई का
अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़

