ज़ाहिरन मौत है क़ज़ा है इश्क़
पर हक़ीक़त में जाँ-फ़ज़ा है इश्क़
देता है लाख तरह से तस्कीन
मरज़-ए-हिज्र में दवा है इश्क़
ता-दम-ए-मर्ग साथ देता है
एक महबूब-ए-बा-वफ़ा है इश्क़
देख 'नस्साख़' गर न होता कुफ़्र
कहते बे-शुबह हम ख़ुदा है इश्क़
ग़ज़ल
ज़ाहिरन मौत है क़ज़ा है इश्क़
अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़