नेक गुज़रे मिरी शब सिद्क़-ए-बदन से तेरे
ग़म नहीं राब्ता-ए-सुब्ह जो काज़िब ठहरे
अब्दुल अहद साज़
नींद मिट्टी की महक सब्ज़े की ठंडक
मुझ को अपना घर बहुत याद आ रहा है
अब्दुल अहद साज़
पस-मंज़र में 'फ़ीड' हुए जाते हैं इंसानी किरदार
फ़ोकस में रफ़्ता रफ़्ता शैतान उभरता आता है
अब्दुल अहद साज़
प्यास बुझ जाए ज़मीं सब्ज़ हो मंज़र धुल जाए
काम क्या क्या न इन आँखों की तिरी आए हमें
अब्दुल अहद साज़
रात है लोग घर में बैठे हैं
दफ़्तर-आलूदा ओ दुकान-ज़दा
अब्दुल अहद साज़
'साज़' जब खुला हम पर शेर कोई 'ग़ालिब' का
हम ने गोया बातिन का इक सुराग़ सा पाया
अब्दुल अहद साज़
शायरी तलब अपनी शायरी अता उस की
हौसले से कम माँगा ज़र्फ़ से सिवा पाया
अब्दुल अहद साज़