हैं उक़्दा-कुशा ये ख़ार-ए-सहरा
कम कर गिला-ए-बरहना-पाई
अल्लामा इक़बाल
हकीम ओ आरिफ़ ओ सूफ़ी तमाम मस्त-ए-ज़ुहूर
किसे ख़बर कि तजल्ली है ऐन-ए-मस्तूरी
अल्लामा इक़बाल
हर शय मुसाफ़िर हर चीज़ राही
क्या चाँद तारे क्या मुर्ग़ ओ माही
अल्लामा इक़बाल
हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक
कुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक
अल्लामा इक़बाल
हवा हो ऐसी कि हिन्दोस्ताँ से ऐ 'इक़बाल'
उड़ा के मुझ को ग़ुबार-ए-रह-ए-हिजाज़ करे
अल्लामा इक़बाल
हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी
ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़
अल्लामा इक़बाल
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
अल्लामा इक़बाल

