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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है
बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है

अल्लामा इक़बाल




ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
कि दरवेशी भी अय्यारी है सुल्तानी भी अय्यारी

अल्लामा इक़बाल




ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है

अल्लामा इक़बाल




ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं
तू आबजू इसे समझा अगर तो चारा नहीं

अल्लामा इक़बाल




किसे ख़बर कि सफ़ीने डुबो चुकी कितने
फ़क़ीह ओ सूफ़ी ओ शाइर की ना-ख़ुश-अंदेशी

अल्लामा इक़बाल




कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे
नियाज़-मंद न क्यूँ आजिज़ी पे नाज़ करे

अल्लामा इक़बाल




महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं
मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में

अल्लामा इक़बाल