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हर चीज़ है महव-ए-ख़ुद-नुमाई | शाही शायरी
har chiz hai mahw-e-KHud-numai

ग़ज़ल

हर चीज़ है महव-ए-ख़ुद-नुमाई

अल्लामा इक़बाल

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हर चीज़ है महव-ए-ख़ुद-नुमाई
हर ज़र्रा शाहीद-ए-किब्रियाई

बे-ज़ौक़-ए-नुमूद ज़िंदगी मौत
तामीर-ए-ख़ुदी में है ख़ुदाई

राई ज़ोर-ए-ख़ुदी से पर्बत
पर्बत ज़ोफ़-ए-ख़ुदी से राई

तारे आवारा ओ कम-आमेज़
तक़दीर-ए-वजूद है जुदाई

ये पिछले पहर का ज़र्द-रू चाँद
बे-राज़ ओ नियाज़-ए-आश्नाई

तेरी क़िंदील है तिरा दिल
तू आप है अपनी रौशनाई

इक तू है कि हक़ है इस जहाँ में
बाक़ी है नुमूद-ए-सीमयाई

हैं उक़्दा-कुशा ये ख़ार-ए-सहरा
कम कर गिला-ए-बरहना-पाई